सामाजिक यथार्थ और उसके उपागम
Abstract
समाजशास्त्र के अध्यायन में पिछले कुछ दशकों में विज्ञानवादिता पर आवश्यकता से अधिक बल दिया गया। उसी के सन्दर्भ में समाजशास्त्र में सामाजिक यथार्थ को समझने के लिये एक नवीन परिप्रेक्ष्य का उदय हुआ। इस परिप्रक्ष्य के समर्थक समाजशास्त्रियों ने उन वर्गो, व्यक्तियों एवं समूहों के अध्ययन पर जोर दिया जो, काफी समय से उपेक्षित रहे हैं तथा जिन्हें व्यवस्था द्वारा कोई संरक्षण नहीं मिल पाया है।
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Published
10-12-2017
How to Cite
Piyusha Somdev Pancholi. (2017). सामाजिक यथार्थ और उसके उपागम . Vidhyayana - An International Multidisciplinary Peer-Reviewed E-Journal - ISSN 2454-8596, 3(3). Retrieved from https://j.vidhyayanaejournal.org/index.php/journal/article/view/285
Issue
Section
Research Papers