मातृत्व का आदर्श, मदालसा

Authors

  • Prof. Hansa ben B. Gujariya

Abstract

भारतीय संस्कृति, सभ्यता और समाज में नारी अपने आदर्शों और आदर्श स्वरूप के कारण गौरवपूर्ण स्थान पर विराजमान है श्रुति ,स्मृति, इतिहास ,पुराण आदि साहित्य से लेकर वर्तमान काल तक नारी के विभिन्न रूप और हर रूप में उसके  प्रदान तथा समर्पण की भूरी भूरी प्रशंसा प्राप्त होती है। एक और यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमंते तत्र देवता कहते हुए उसका सम्मान और सामाजिक गौरवगान है। तो दूसरी ओर न ही स्त्री स्वातंत्र्यमरहती जैसी निंदनीय स्थिति का दर्शन भी होता है। वैराग्य मार्ग के प्रस्तोता ओने नारी नरक की खान कहते हुए नारी निंदा की है। तथा उसे वैराग्य में बाधा रूप माना है। किंतु जब हम पुराणों में दृष्टिपात करते हैं तो अद्भुत आनंददात्री, जीवनदात्री, मोक्षदात्री के रूप में; स्वयं अपेक्षा रहित अन्नपूर्णा के रूप में नारी नजर आती है। भारतीय संपूर्ण साहित्य में माता का गौरवशाली रूप प्रस्तुत होता है।

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References

अथर्ववेद: सं. श्री राम शर्मा आचार्य, मथुरा

मारकंडेय पुराण: सं. श्रीराम शर्मा, आचार्य, मथुरा

मनुस्मृति: सुरेंद्रनाथ सक्सेना, मनोज पब्लिकेशंस दिल्ली,२०१९

महाभारत: गीता प्रेस गोरखपुर

पुराणों में भारतीय संस्कृति: पुरोहित , सोहन कृष्णा, जोधपुर २००७

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Published

10-10-2019

How to Cite

Prof. Hansa ben B. Gujariya. (2019). मातृत्व का आदर्श, मदालसा. Vidhyayana - An International Multidisciplinary Peer-Reviewed E-Journal - ISSN 2454-8596, 5(2). Retrieved from https://j.vidhyayanaejournal.org/index.php/journal/article/view/79