सूर्यकांत त्रिपाठी निराला : बहू प्रतिभा संपन्न कलाकार एवं साहित्यकार
Keywords:
सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’, स्वच्छंदता, फक्कड़पन, प्रगतिशील, निर्भीकताAbstract
सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ एक कवि, उपन्यासकार, निबन्धकार और कहानीकार थे। वे जयशंकर प्रसाद, सुमित्रानंदन पंत और महादेवी वर्मा के साथ हिंदी साहित्य के चार प्रमुख स्तंभों में से एक माने जाते हैं। निराला जी के काव्य में फक्कड़पन, निर्भीकता ,क्रांतिकारी ,स्वच्छंदता तथा प्रगतिशील युक्त नवीन भावों को देखा जा सकता है। उन्होंने निर्भीकता के साथ व्यक्तिगत अनुभूति के भावों की स्वच्छंद अभिव्यक्ति को महत्व दिया। इसलिए स्वभावतः उनके काव्य में हमें आत्मस्वीकृति और आत्मभिव्यक्ति मिलती है।
निराला जी के काव्य में प्रगतिशील तत्व आरंभ से ही विद्यमान थे । वास्तव में आधुनिक साहित्य के जितने भी प्रगतिशील मूल्य हैं उन सब को उनकी रचनाओं में देखा जा सकता है। उन्होंने गद्य और पद्य दोनों में ही हाथ आजमाया। उनके गद्य को पढ़े बिना प्रगतिशील मूल्यों को समझा नहीं जा सकता ।बहुमुखी प्रतिभा के धनी निराला वास्तव में निराले ही थे। उन्होंने अपने समय की हर समस्या को ना केवल साहित्य का विषय बनाया बल्कि उसे सशक्त अभिव्यक्ति भी दी।
निराले व्यक्तित्व के कारण इन्हें सैकड़ों में सरलता से पहचाना जा सकता था । सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ एक कवि, उपन्यासकार, निबन्धकार और कहानीकार थे। निराला ने 1920 ई० के आसपास से लेखन कार्य आरंभ किया। निराला की प्रथम रचना ‘जूही की कली’ 1922 ई० में पहली बार प्रकाशित हुई थी। उन्होंने कई कहानियां उपन्यास और निबंध भी लिखे हैं। निराला जी को विशेष प्रसिद्धि उनकी कविता के कारण मिली।
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References
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विकिपीडिया
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