वैदिक मूल्यो विश्वशान्ति के संदर्भ में

Authors

  • Dr. Hetal M. Pandya

Abstract

वेद में तो विशुद्ध मानववाद का दिव्य सन्देश है । वेद में मनुष्य के सच्चे विकास के लिए उसके आत्मिकबल के लिए, बहुत उदात्त आचार शास्त्र का संकलन  है । वेद परमपिता परमेश्वर को सब प्राणियों का पिता घोषित कर प्राणिमात्र के प्रति समदृष्टि की भावना उत्पन्न करता है । वेद की दृष्टि में परमेंश्वर सर्वव्यापक, सर्वज्ञ एवं सर्वनियन्ता है । उसके नियम अटल है । सदाचार एवं समष्टि भावना से ही व्यक्ति आत्मदर्शन करके ब्रह्मसाक्षात्कार कर सकता है । वेद मानवमात्र को अमृत पुत्र घोषित करता है । उसका उद्घोष है, कि ‘ये सब मनुष्य भाई है । इनमें कोई जन्म से बडा नही है, छोटा नहीं है इस समानता के भाव को धारण करते हुए सब एश्वर्य या उन्नति के लिए मिलकर प्रयत्न करे ।’ वेद कहता है कि दुराचारी व्यक्ति ऋत् के पथ को पार नहीं कर सकता – ‘ऋतस्य पन्थाः न तरन्ति दुष्कृतः’ । स्वर्ग या ज्योति की और ले जानेवाला देवयान मार्ग सुकृति अर्थात् सदाचारी व्यक्ति के लिए है – स्वर्गः पन्थाः सुकृते देवयानः । वेद में प्रार्थना है कि सर्वाग्राही देव ! आप सब के नियन्ता है । मुझे दुश्चरित से पृथक् करों और सब और से सदाचार का भागी   बनाओं । में अमर देवों का अनुकरण करूं तथा दीर्घ आयुष्य, शोभनजीवन लेकर उपर ऊठ जाऊँ । इस प्रकार वेद समता, मातृभाव, विश्व-बन्धुत्व सम्बन्धी शिक्षाओं तथा सदाचार की शिक्षाओं का विश्वकोष ही सिद्ध होता है ।

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References

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English

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Published

10-06-2019

How to Cite

Dr. Hetal M. Pandya. (2019). वैदिक मूल्यो विश्वशान्ति के संदर्भ में. Vidhyayana - An International Multidisciplinary Peer-Reviewed E-Journal - ISSN 2454-8596, 4(6). Retrieved from https://j.vidhyayanaejournal.org/index.php/journal/article/view/1379