मोक्ष प्राप्ति के मार्ग का महत्वपूर्ग योर्दान

Authors

  • Dr. Dharmishtha H. Gohil

Abstract

भारतीय प्राचिन नितियों में मोक्ष प्राप्ति के साधन का महत्व पूर्ण योगदान है मनुष्यका शुभ-अशुभ कर्म मन, वाणी, शरीर से उत्पन्न होता है और इसी से उसको उतम, मध्यम और अधर्म योनिया प्राप्त होती है। वाणी का दण्ड, मन का दण्ड, शरीर का दण्ड जिसकी बुद्धि में स्थित है उसे त्रिदंडी कहते हैं। मनुष्य इन तिन दण्डो को सब जीवों के विषय में लगाकर कर्म, क्रोध को रोक कर सिद्धियाँ प्राप्त करता है। जब विषयासक्ति से उत्पन्न हुए दुःख फल वाले पापो को भोगकर उसके बाद पाप से छुटा है और पुण्य को प्राप्त करता है। पूण्य और पाप दोनों से युक्त मनुष्य इस लोक परलोक में सुख-दुःख प्राप्त करके परमात्मा के साथ संबंध बांधता है। मनुष्य को धर्म और अधर्म से प्राप्त गतियो को अपने चित्त में देखकर मन को सदा धर्मे में लगाना चहिए यह शौच बताई गई है। मनुष्य सत्व, रजस, तमस, तिन गुणों के कारण कर्म करता है उसी प्रकार विभिन्न योनियों में जन्म धारण करना पड़ता है। मोक्ष प्राप्ति की नरक गति, तिर्यंच गति, मनुष्य गति और देव गतियह चारों गतियों से अर्थात ८४ लाख योनियों से छुटकारा पाकर ही जीव मोक्ष प्राप्ति कर सकता है अन्यथा नहीं। परन्तु प्रत्येक जीव की स् कर्मानुसार विभिन्न गति होती है, यही कर्मविपाक का सर्वतंत्र सिद्धांत हैवेद का अभ्यास तप, ज्ञान, बहुत ही कल्याणकारी होता है। शास्त्रकारों ने मोक्ष प्राप्त करने के दस साधन बताए हैंमाँन, ब्रह्मचर्य व्रत, शास्त्र श्रवण, तप, अध्ययन, स्वधर्म पालन, शास्त्रों की व्याख्या, एकान्तवास, जप, समाधि आदि की विचारणा की गई है।

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References

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Published

10-02-2017

How to Cite

Dr. Dharmishtha H. Gohil. (2017). मोक्ष प्राप्ति के मार्ग का महत्वपूर्ग योर्दान. Vidhyayana - An International Multidisciplinary Peer-Reviewed E-Journal - ISSN 2454-8596, 2(4). Retrieved from https://j.vidhyayanaejournal.org/index.php/journal/article/view/1092